Saturday, February 25, 2017

Mala Neshil Ka

निळ्याभोर  गगनात  दिसणारे  पांढुरके  ते  ढग 
डोळे  भरून  पाहता  डोळे  दिपतील  ते  बघ 
स्वच्छंद  वारा  वाही  अशा  त्या  ठिकाणी 
सांग  मला  तू  नेशील  का ?

वाऱ्याने  झुळझुळणारे  हिरवे  पिवळे  ते  शेत 
मित्रांसोबत  अबोध  ढोरंही  जेथे  देती  भेट 
तुझ्या  बालपणाच्या  त्या  खास  ठिकाणी 
सांग  मला  तू  नेशील  का ?

थकलेल्या  गाड्यांसंगे  वाटेत  घ्यावा  थोडा  विसावा 
डाळीत  बाट्यांच्या  न्याहारीत  साधेपणाचा  गोडवा  असावा 
निसर्गाच्या  सानिध्यात  त्या  प्रेमळ  ठिकाणी 
सांग  मला  तू  नेशील  का ?

काळ्या  कुट्ट  काळोखात  घरी परतीच्या  वेळी 
काजव्यांचे  दिवे  दाखविती  वाट  जणू  दिवाळी 
परिकथेतील  वाटावे   अशा  त्या  ठिकाणी 
सांग  मला  तू  नेशील  का ?

राबलेल्या  शरीराचे  शीण  थोडे  काढावे 
बैलाच्या  जोडी  शेजारी  जरा  निजावे 
रम्य  आठवणी  असलेल्या  तुझ्या  त्या  गावी 
सांग  मला  तू  नेशील  का ?

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